सरकार का दरवार नहीं देख रहे क्या
और दरवार में दो यार नहीं देख रहे क्या
कहते हो कि क़ुरान में अबू बक़्र कहां है
तुम आयते फिल्गा़र नहीं देख रहे क्या
सिद्दीक़ इमामत पे हैं और मुक़तदीयों में
तुम हैदरे क़र्रार नहीं देख रहे क्या
दूल्हा बने आए हैं अबू बक़्र के घर में
कौ़नैन के सरदार नहीं देख रहे क्या
हर घर नहीं अल्लाह का घर होता मेरे दोस्त
तुम मस्जिदे ज़र्रार नहीं देख रहे क्या
तहसीन अभी हक़ के तरफ दार बहुत हैं
ये मजमए बेदार नहीं देख रहे क्या
ना’त-ख़्वां
सैफ रज़ा कानपुरी
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