Ad Banner

हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुलबजादैन र: अ: और मुहब्बते इलाही का एक खूबसूरत वाक्या | hajrat abdullah bin julbajadain r a beutiful story | in hindi

हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुलबजादैन र: अ:  और मुहब्बते इलाही का  एक खूबसूरत वाक्या | hajrat abdullah bin julbajadain r a beutiful story | in hindi
islamic story

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

मुहब्बते इलाही का जज़्बा इंसान के दिल में हो तो अल्लाह ताला बड़ी कद्रदानी फरमाते हैं। 

मुहब्बत में ऐसी कैफियत हो जैसी हजरत अब्दुल्लाह बिन जुल-बजादैन रज़ियल्लाहु अन्हु को नसीब हुई थी ये एक नौजवान सहाबी थे जो मदीना तैय्यबा से कुछ फासले पर एक बस्ती में रहते थे। दोस्तों से मालूम हुआ कि मदीना तैय्यबा में एक पैग़म्बर अलैहिस्सलातु वस्सलाम तशरीफ लाए हैं। चुनाँचे हाज़िर हुए और चोरी छिपे कलिमा पढ़ लिया। वापस घर आए। घर के सब लोग अभी काफिर थे लेकिन मुहब्बत तो वह चीज़ है जो छिप नहीं अपनी तरफ से तो छिपाया कि किसी को पता न चले मगर अलैहिस्सलातु वस्सलाम का कोई ज़िक्र करता तो ये मुतवज्जेह होते


एकदम भी मुहब्बत छिप न सकी जब तेरा किसी ने नाम लिया,

चुनाँचे घर वालों ने अंदाज़ा लगा लिया कि कोई न कोई मामला ज़रूर है। एक दिन चचा ने खड़ा करके पूछा बताओ भाई कलिमा पढ़ लिया है? फ़रमाने लगे जी हाँ चचा कहने लगा अब तेरे सामने दो रास्ते हैं या तो कलिमा पढ़कर घर से निकल जा और अगर घर में रहना है तो फिर हमारे दीन को क़ुबूल कर ले। चुनाँचे एक ही लम्हे में फ़ैसला कर लिया। फरमाने लगे मैं घर तो छोड़ सकता हूँ लेकिन -अल्लाह के दीन को नहीं छोड़ सकता। 

चचा ने मारा पीटा भी और जाते हुए जिस्म के कपड़े भी उतार लिए जिस्म पर कोई कपड़ा न था। माँ आख़िर माँ होती है, शौहर की वजह से ज़ाहिर में कुछ कह तो न सकी लेकिन छिपकर अपनी चादर पकड़ा दी कि बेटा! सतर छिपा लेना। वह चादर लेकर जब बाहर निकले तो उसके दो टुकड़े किए। एक से सतर छिपा लिया और दूसरी ओढ़ ली। इसीलिए जुल बजादैन यानी दो चादरों वाले मशहूर हो गए। अब कहाँ गए? जहाँ सौदा कर चुके थे। 



कदम अपने आप मदीना तैय्यबा की तरफ बढ़ रहे हैं,

रात को सफर करके सुबह को नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने देखा तो चेहरे पर अंजीब खुशी की कैफियत ज़ाहिर हुई।सहाबा किराम मुतवज्जेह हुए कि यह कौन आया कि जिसको देखकर अल्लाह के का चेहरा यूँ तमतमा उठा है दोनों जहाँ किसी की मुहब्बत में हार के वह आ रहा है कोई शबे ग़म गुज़ार के

हाज़िरे ख़िदमत हुए और अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के नबी! सब कुछ छोड़ चुका हूँ। अब तो आप सल्लल्लहु अलैहि वसल्लम के कदमों में हाज़िर हुआ हूँ। लिहाज़ा असहाबे सुफ्फा में शामिल हो गए और वहीं रहना शुरू कर दिया।


क्योंकि क़ुर्बानी बहुत बड़ी दी थी,

मुहब्बते इलाही में अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया था इसलिए इसका बदला ऐसा ही मिलना चाहिए था। इसलिए उनको ऐसी कैफियतें हासिल थीं कि मुहब्बते इलाही में कभी-कभी जज़्ब में आ जाते थे। आजकल के लोग है कि जनाब जज्ब क्या होता है? जनाब हदीसे मुबारका पढ़ो फिर ता चलेगा कि जज्ब सहाबा किराम पर भी तारी होता था। 

हदीसे मुबारका में आया है कि यह (हज़रत अब्दुल्लाह ज़ुल-बजादैन रज़ियल्लाहु अन्हु) मस्जिदे नबवी के दरवाज़े पर कभी-कभी बैठे होते थे और ऐसा जज़्ब तारी होता था कि ऊँची आवाज़ में अल्लाह! अल्लाह! अल्लाह! कह उठते थे। हज़रत उमर रज़ियल्लहु अन्हु ने देखा तो उन्होंने डांटा कि क्या करता है। यह सुनकर अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, उमर अब्दुल्लाह को कुछ न कहो। यह जो कुछ कर रहा है इख़्लास से कर रहा है।

कुछ अरसा गुज़रा नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक गुज़वे में तशरीफ ले गए। हज़रत अब्दुल्लाह भी साथ थे। रास्ते में एक जगह पहुँचे तो बुखार हो गया। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पता चला तो आप, अबूबक्र व उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा को साथ लेकर तशरीफ़ लाए। जब वहाँ पहुँचे तो हज़रत अब्दुल्लाह के कुछ लम्हें बाकी थे। 


नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके सर को अपनी गोद मुबारक में रख लिया,

यह वह खुशनसीब सहाबी जनकी निगाहें चेहर-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर लगी हुई थीं और वह अपनी जिंदगी के आखिरी साँस ले रहे थे, सुब्हानअल्लाह गोद मुबारक में अपनी जान इस कैफियत में जान देने वाले के सुपुर्द कर दी।नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया कि कफन-दफन की तैयारी करो। 

आपने अपनी चादर भिजवाई और फ़रमाया कि अब्दुल्लाह को इस चादर में कफ़न दिया जाएगा। सुब्हान अल्लाह! वाह अल्लाह! तू भी कितना कद्रदान है कि जिस बदन को तेरी राह में नंगा किया गया था आज तू उस बदन को अपने महबूब की कमली में छिपा रहा है। सुब्हानअल्लाह! सौदा करके देखें। फिर देखें कि अल्लाह रब्बुलइज्ज़त कैसी कद्रदानी फरमाते हैं। हम लोग ही बेकद्रे हैं कि अल्लाह तआला को भी कहना पड़ा,



ورما قدرو الله حق قددره


और उन्होंने अल्लाह तआला की कद्र नहीं की जैसी करनी चाहिए थी,


खुद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनका जनाजा पढ़ाया। फिर जनाज़ा लेकर कब्रिस्तान की तरफ चले। शरिअत का मस्अला यह है कि जो आदमी मैय्यत का सबसे ज़्यादा करीबी हो तो वह कब्र में उसको उतारने के लिए उतरे। उस वक़्त अबूबक़ व उमर रज़ियल्लहु अन्हुमा भी खड़े थे  

नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने खुद कब्र में उतरकर फरमाया कि अपने भाई को पकड़ा दो मगर उनके अदब का ख्याल रखना। आपने उस आशिक सादिक को अपने हाथों में लिया और जमीन पर लिटा दिया गोया अपनी अमानत को ज़मीन के सुपुर्द किया हदिसे मुबारक का खुलासा है अल्लाह के महबूब सल्लल्लाहु एलेही वसल्लम ने जब उनको ज़मीन पर रखा तो आप ने इर्शादर फरमाया, 

ऐ अल्लाह मैं अब्दुल्लाह से राज़ी हूँ तू भी इससे राज़ी हो जा ये ऐसे बोल थे कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु’ भी सुनकर वज्द में आ गए और कहने लगे मेरा जी चाहता है कि काश! आज नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुबारक हाथों में मेरी मैय्यत होती।

وهل جزاء الاحسان الا الاحسان.»

दोस्तों: आपने देखा मेहनत व मुजाहिदा और कुर्बानियाँ करने वालों को अल्लाह रब्बुलइज्ज़त यूँ बदला दिया करते हैं। आप सोचिए कि जो आका अपने कमज़ोर बंदों को हुक्म फरमाता है, तो कोई अगर उसके लिए कुर्बानियाँ दे तो क्या अल्लाह रब्बुलइज्ज़त कद्रदानी नहीं फरमाएगें। ज़रूर फरमाएंगे, सुब्हान अल्लाह।


दोस्तों अगर आप को हमारी ये पोस्ट पसंद आई हो तो बराए मेहेरबानी पोस्ट को शेयर जरूर करें खुदा हाफ़िज़  

Leave a Comment