islamic moral storie |
और उसी के सामने मै तुम से कर्ज वापस भी ले सकूँ तो उस सख्स ने कहा के अल्लाह का गवाह होना काफी है तो फिर उस सख्स ने कहा के चलो कोई ऐसा सख्स ही ले आओ जो तुम्हारी जमानत ले सके तो फिर उसने कहा के जमानत के लिए भी अल्लाह ही काफी है तो फिर कर्ज देने वाले ने कहा के बेशक आप ने ठीक ही कहा के जमानत के लिये भी अल्लाह ही काफी है
ये कह कर उसने उस सख्स को 1000 अशर्फियाँ दे दी और उसने कहा के अल्लाह को जमानत बनाते हुए मैं आप को 1000 अशर्फियाँ दे रहा हूँ तुम मुझे फलां तारीख को वापस कर देना फिर वो सख्स अशर्फियाँ ले कर तिजारत करने के लिए समंदर पार चला गया
और जब कर्ज वापस करने की तारीख आई तो वो सख्स वापस करने के लिए समंदर के पास आगया वो किसी कस्ती का इंतजार करने लगा मगर कोई कस्ती उसे नहीं मिली और उसे कस्ती मिलने के कोई आसार भी नजर नहीं आरहे थे और उधर कर्ज वापस करने की तारीख भी करीब आरही थी
जब उस सख्स को कोई भी रास्ता ना मिला तो उस सख्स ने एक लकड़ी ली और उसमे एक सुराख कर के 1000 अशर्फियाँ उसमे डाल दी और साथ ही एक खत में कर्ज देने वाले का नाम लिख कर अशर्फ़ियों के साथ रख दिया और उस लकड़ी का सुराख़ बंद करके समंदर में डाल दिया और कहा के अल्लाह तू जानता है के मैंने तेरी जमानत में एक सख्स से कर्ज लिया था
और वो सख्स तेरी जमानत पर मुझे कर्ज देने पर राजी हो गया था अब जो की मुद्दत पूरी हो गई है और मुझे वहां जाने के लिए कोई कस्ती भी नहीं मिल रही के मैं वहां जाकर उसका कर्ज वापस कर सकूँ तो अब मैं ये अमानत तेरे जिम्मे करता हूँ अब तू ये अमानत उस सख्स तक पोहचा दे
ये कह कर उसने लकड़ी समंदर में बहा दी और वो वापस चला गया उधर वो कर्ज देने वाला सख्स इस उम्मीद पर समंदर के किनारे चला आया के सायद वो सौदागर उसका कर्ज वापस ले कर आया हो उसने देखा के यहाँ तो कोई भी कस्ती नहीं है मगर एक लकड़ी बेहति हुई आरही है जब वो लकड़ी किनारे तक आगई तो वो उसे उठा कर जलाने के खातिर अपने घर ले आया
फिर जब उसने लकड़ी को काटा तो उस लकड़ी में से 1000 अशर्फियाँ और एक खत निकला जिसमे उसका नाम था ये देख कर(beutiful islamic story)वो बोहत हैरान हुवा और अल्लाह का शुक्र अदा किया कई दिनों बाद जब वो सौदागर वापस लौट कर आया तो ये सोच कर के पता नहीं के वो लकड़ी उस को मिली होगी या नहीं इसलिए वो 1000 अशर्फियाँ लेकर उसके पास गया
और उस्से बोला के अल्लाह की कसम मैं तुम्हारा कर्ज लेकर साहिल तक आगया था मगर मुझे कोई भी कस्ती नहीं मिली जिस्के जरिए मैं समंदर पार आजाता अब मैं आगया हूँ तो तुम अपना ये कर्ज वापस ले लो तो कर्ज देने वाले ने ये कहा के पहले तुम मुझे ये बताओ के तुमने किसी लकड़ी में रख के 1000 अशर्फियाँ और एक खत मेरी तरफ भेजा था
तो उसने कहा के जब मुझे कोई भी कस्ती ना मिली तो मैंने एक लकड़ी में सुराख़ कर के उसमे 1000 अशर्फियाँ और एक खत रख कर उसे अल्लाह के हवाले कर दिया था के वो आप तक पोहचा दे तो कर्ज देने वाले ने कहा के हाँ वो लकड़ी मुझ तक पोहोच गई थी और मेरा सब कर्ज मुझे मिल चूका है अब तुम ये अशर्फियाँ वापस ले जाओ
सबक
दोस्तों इस वाक़ये से हमें ये सबक मिलता है के नियत साफ़ तो मंजिल आसान अगर देने वाले की नियत साफ़ हो तो अल्लाह ताला कोई ना कोई रास्ता बना देता है अल्लाह ताला हमें भी सही रास्ते पर चलने की आसानी अता फरमाए आमीन