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इमाम साहब का मर्तबा एक खूबसूरत वाक्या-A beautiful sentence by Imam Sahab |
आज मैं एक कसाब की दुकान पर बैठा था तभी उस कसाब की दुकान पर एक नौजवान सफेद लिबास में चेहरे पर दाढ़ी, सर पर टोपी, आंखों पर चश्मा लगाए दुकान में दाख़िल हुआ दुकान पर काफ़ी भीड़ लगी हुई थी लोगों की आवाज़ से दुकान गूंज रही थी भाई 1 किलो गोश्त देना भाई 2 किलो गोश्त देना, भाई आधा किलो गोश्त देना। ऐसी आवाजें शोर पैदा कर रही थी।
उस दुकान में इन्हीं आवाजों के बीच जैसे ही वो नौजवान दाख़िल हुआ दुकान में कसाई ने सारे ग्राहकों को छोड़कर उस नौजवान से पूछा क्या चाहिए भाई आपको?
नौजवान ने कहा आधा किलो गोश्त चाहिए कसाई ने फ़ौरन बेहतरीन गोश्त का टुकड़ा काटा और अच्छी तरह से बोटी बना कर दे दिया।
नौजवान ने कसाब को पैसे देने के लिए हाथ बढ़ाया तो कसाई ने लेने से इंकार कर दिया। नौजवान ने कहा जावेद भाई आप हमेशा ऐसा ही करते हो, कसाई इस बात पर थोड़ा मुस्कुराया दिया और नौजवान भी मुस्कुराते हुए दुकान से बाहर चला गया
दुकान पर और जो ग्राहक थे वो तरह तरह की बातें करने लगे कि हम कब से खड़े हैं(muslim istory)और कसाई को देखो लगता है इसको चर्बी चढ़ी है। ग्राहक की कोई इज़्ज़त ही नहीं तभी मेरे दिमाग़ में सवाल के घोड़े दौड़ने लगे मैं दुकान खाली होने का इंतज़ार करने लगा।
सारे ग्राहकों को निपटा कर जैसे ही कसाई खाली हुआ मैंने कहा एक किलो गोश्त मेरे लिए बनाना फिर मैंने कहा- अभी जो नौजवान आपकी दुकान से गोश्त लेकर गया है क्या वह आपका कोई क़रीबी रिश्तेदार है या दोस्त है सारे ग्राहक छोड़कर आप ने सबसे पहले उसको गोश्त दिया। कसाई मुस्कुराया और बोला जी नहीं
मैंने कहा ओह्ह अच्छा मगर तुमने पैसे क्यों नहीं लिए कसाई फिर मुस्कुराया और बोला क्या तुम्हें नहीं पता मस्जिदों के इमामों को क्या दिया जाता है ? कितनी तनख़्वाह (salry) है उनकी इतने का तो साहब आप लोग महीने भर में सिगरेट पी जाते हो।
मैं सोचने लगा वाक़ई बात में तो दम है। कसाई फिर बोला साहब यह हमारी क़ौम का खज़ाना हैं। इनको बचाना हमारी ज़िम्मेदारी है। बाज़ार के तमाम दुकान वालों ने मिलकर एक फैसला किया है कि मौलाना साहब से कोई पैसा नहीं लेगा सिर्फ़ मैं ही नहीं यह बाल दाढ़ी की दुकान वाला नाई, राशन की दुकान वाला वह टेलर मास्टर, यह डॉक्टर साहब, वह मेडिकल वाला, दूध वाला, सब्जी वाला कोई उनसे पैसे नहीं लेता भाई इतना तो हम कर ही सकते हैं?
और फिर मुस्कुराकर कहने लगा साहब आधा किलो गोश्त के बदले जन्नत मुनाफफे का सौदा है।
यह लो जी आप के गोश्त की थैली
सबक दोस्तो इस story से आप को क्या समझ आया की हमारी मस्जिदों के इमाम साहब या मोअ जजिन साहब की तनख्वाह (salry) बोहोत कम होती है अक्सर देखा और सुना गया है के कहीं कहीं पर इमाम साहब की इतनी कम तनख्वाह (salry) होती है के उन अल्लाह के बंदों को अपने बच्चो का पेट पालना भी मुस्किल हो जाता है
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