सपने (ख़्वाब) इंसान की ज़िंदगी का हिस्सा हैं।
कभी-कभी कुछ ख़्वाब ऐसे होते हैं जो बेहयाई या शर्मनाक लगते हैं,
लेकिन इस्लाम में उनका मतलब हमेशा बुरा या गुनाह नहीं होता।
इस्लामी उलेमा बताते हैं कि ऐसे ख़्वाब ज़्यादातर नफ़्स (मन, इच्छाओं) से जुड़े होते हैं,
जिनका कोई “शरई” (कानूनी) या “गुनाही” मतलब नहीं होता।
इस्लामी नज़रिया
रसूल-ए-पाक ﷺ ने फरमाया:
“अच्छा ख़्वाब रहमान की तरफ़ से होता है और बुरा ख़्वाब शैतान की तरफ़ से।”
(सहीह मुस्लिम)
इसलिए जब कोई इंसान बेहयाई या जिस्मानी तरह का ख़्वाब देखता है,
तो वह ज़्यादातर नफ़्सानी (self-desire based) ख़्वाब होता है।
यानी इसका ताल्लुक़ इंसान की सोच, दिल या हवास से होता है —
न कि यह कोई इलाही पैग़ाम या इस्लामी ताबीर वाला सपना हो।
फिक़्हे हनफ़ी के मुताबिक़ ताबीर
फिक़्हे हनफ़ी की किताबों के अनुसार:
“अगर किसी को ख़्वाब में कोई हराम या शर्मनाक चीज़ दिखाई दे,
तो यह नफ़्स और हवास का असर है, जिसकी ताबीर नहीं निकाली जाती।”
ऐसे ख़्वाब को ना बयान किया जाए,
ना उस पर यक़ीन रखा जाए,
क्योंकि यह हकीक़ी नहीं बल्कि नफ़्सानी ख़्वाब है।
अगर ऐसा ख़्वाब आए तो क्या करें
- अल्लाह की पनाह माँगें:
उठते ही कहें —
A‘uzu billahi min ash-shaytanir-rajim
(मैं शैतान मर्दूद से अल्लाह की पनाह मांगता हूँ) - किसी से बयान न करें:
रसूल ﷺ ने फरमाया:
“जो बुरा ख़्वाब देखे, वह किसी से बयान न करे।” (सहीह बुख़ारी) - रुख बदलकर सो जाएँ:
जिस तरफ़ सो रहे थे, उस तरफ़ का रुख बदल लें। - अस्तग़फ़िरुल्लाह पढ़ें:
कम से कम 3 बार कहें — Astaghfirullah Rabbi min kulli zambin - सदक़ा दें:
थोड़ा सा दान करें — इससे नफ़्स और वसवसे दूर होते हैं।
रूहानी मतलब (Spiritual Meaning)
ऐसा ख़्वाब कभी-कभी अल्लाह की तरफ़ से हिदायत या चेतावनी भी हो सकता है
कि इंसान अपने दिल, नज़र और आमाल को पाक और साफ़ रखे।
इसलिए इसे शर्मनाक समझकर उदास होने के बजाय,
इस्तेग़फ़ार और नमाज़ में लग जाना सबसे बेहतर अमल है।
FAQs – आम सवाल
Q1. क्या यह ख़्वाब गुनाह की निशानी है?
– नहीं, यह नफ़्सानी ख़्वाब होता है, गुनाह नहीं।
Q2. क्या इसकी ताबीर निकाली जा सकती है?
– नहीं, फिक़्हे हनफ़ी के मुताबिक़ इसकी ताबीर नहीं निकाली जाती।
Q3. क्या यह शैतान की तरफ़ से होता है?
– कभी-कभी यह शैतान के वसवसे का असर होता है, लेकिन गुनाह नहीं।
Q4. क्या करना चाहिए?
– अल्लाह की पनाह माँगें, इस्तेग़फ़ार पढ़ें और सदक़ा करें।
नतीजा (Conclusion)
“ख़्वाब में औरत की शर्मगाह देखना”
इस्लामी और फिक़्हे हनफ़ी नज़र से नफ़्सानी ख़्वाब है,
जिसका मतलब कोई गुनाह नहीं बल्कि रूहानी तज़किया (दिल की सफाई) की ज़रूरत है।
अल्लाह तआला ऐसे ख़्वाबों से इंसान को हिदायत और तौबा की तरफ़ बुलाता है।
इसलिए डरने या शर्मिंदा होने की नहीं — इस्तेग़फ़ार करने की ज़रूरत है।