हज़रत अली (र॰अ) की सखावत |
✍️ (Mohd Afzal)
Story of Hazrat ali-एक बार हज़रत (हसन व हुसैन) (र॰अ) बहुत बीमार हो गए। तबियत संभल ही नहीं रही थी। ख़ातूने जन्नत हज़रत फातिमा (र॰अ) ने दोनों शहज़ादों की सेहत के लिए मन्नत मांगी कि या अल्लाह दोनों बच्चों को सेहत मिल गई तो हम मियाँ बीवी तीन दिन लगातार नफली रोज़े रखेंगे।
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दूसरे दिन हज़रत अली (र॰अ) ने कुछ काम किया मगर उजरत इतनी मिली कि फिर दोनों के लिए सिर्फ एक रोटी। जब इफ़्तिारी का वक्त करीब आया तो फिर दरवाज़े पर दस्तक हुई। पता चला कि एक यतीम सवाली बनकर आया है और कुछ खाने के लिए मांग रहा है। मियाँ बीवी ने सोचा कि हम आज फिर खाए बगैर गुज़ारा कर लेंगे मगर यतीम को इंकार करना ठीक नहीं।लिहाज़ा रोटी यतीम को दे दी गई और खुद पानी से रोज़ा इफ़्तिार कर लिया। सहरी के वक्त भी सिर्फ पानी था।
Story of sahaba-तीसरे दिन हज़रत अली कुछ लेकर आए मगर वह भी इतना कि मियाँ बीवी मुश्किल से इफ़्तिार कर सकते थे। लेकिन इस दिन एक कैदी ने दस्तक दी और सवाल किया। गोया तीन दिन लगातार भूखा रहने से हज़रत अली और हज़रत फ़ातिमा की हालत बहुत कमज़ोर हो गई थी कमज़ोरी बहुत ज़्यादा थी। भूख की शिद्दत ने बेचैन कर दिया था मगर अल्लाह के नाम पर सवाल करने वालों को ख़ाली भेज देना उनके नज़दीक मुनासिब नहीं था।
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Story of sahaba-लिहाजा तीसरे दिन भी रोटी उठकार सवाल करने वाले को दे दी। अपने ऊपर तंगी बरदाश्त कर ली मगर मुहब्बते इलाही से दिल ऐसा लबरेज़ था कि अल्लाह के नाम पर जान देना भी आसान था यह तो फिर रोटी की बात थी। आशिकों की जिंदगियों का एक खुला पहलू यही होता है कि वे अपना सब कुछ अल्लाह तआला की ख़ातिर कुर्बान करने के लिए तैयार होते हैं।
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